लोहड़ी: एक सांस्कृतिक और पारंपरिक पर्व , जाने मनाने का कारण , और महत्त्व

0
20250113_090839_0000

लोहड़ी उत्तर भारत का एक प्रमुख त्यौहार है, जो विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तरी भारत के अन्य हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है और फसल कटाई का प्रतीक है। यह त्यौहार न केवल कृषि से जुड़ा है, बल्कि सामूहिकता, परंपरा और भारतीय संस्कृति के महत्व को भी दर्शाता है। लोहड़ी के समय चारों ओर खुशहाली का माहौल रहता है।

 

लोहड़ी का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

लोहड़ी के पीछे कई ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, यह त्यौहार दुल्ला भट्टी नामक एक प्रसिद्ध लोक नायक को समर्पित है। दुल्ला भट्टी ने मुगलों के शासनकाल में गरीब लड़कियों को बचाकर उनकी शादी कराई और उनकी आर्थिक मदद की। इस कारण लोहड़ी पर गाए जाने वाले लोकगीतों में दुल्ला भट्टी का नाम विशेष रूप से लिया जाता है।

 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह त्यौहार सूर्य देव और अग्नि देवता की पूजा का प्रतीक है। लोहड़ी की आग में तिल, गुड़, मूँगफली और रेवड़ी अर्पित करने का महत्व है, जिससे यह संदेश मिलता है कि मनुष्य को प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए।

लोहड़ी का कृषि से संबंध

लोहड़ी का सीधा संबंध फसल कटाई और कृषि से है। यह समय रबी की फसल कटाई का होता है, जो किसानों के लिए सबसे खुशी का अवसर होता है। इस दिन किसान भगवान का धन्यवाद करते हैं कि उनकी फसल अच्छी हुई और उनके घर में समृद्धि आई।

 

लोहड़ी के उत्सव का तरीका

लोहड़ी के दिन लोग शाम को लकड़ियों और गोबर के उपलों से आग जलाते हैं। इसके चारों ओर सभी लोग इकट्ठा होकर नृत्य, गीत और भंगड़ा करते हैं। इस दौरान तिल, मूंगफली, रेवड़ी और गुड़ जैसी चीजें अग्नि में अर्पित की जाती हैं। यह अग्नि को पवित्र माना जाता है और इसे पूजा का मुख्य अंग समझा जाता है।

 

लोहड़ी पर गाए जाने वाले गीत इस त्यौहार की खासियत हैं। इन गीतों में दुल्ला भट्टी के साथ-साथ प्रकृति, परिवार और कृषि का वर्णन होता है। बच्चे घर-घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं और बदले में उन्हें गिफ्ट, मिठाई या पैसे दिए जाते हैं।

 

लोहड़ी और नई पीढ़ी

आज के समय में लोहड़ी का स्वरूप बदल रहा है। जहाँ पहले यह केवल गाँवों और कृषि आधारित समाज तक सीमित था, वहीं अब यह शहरों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। नई पीढ़ी के लिए यह त्यौहार केवल मनोरंजन का जरिया बनता जा रहा है। हालांकि, यह जरूरी है कि हम इस त्यौहार के मूल उद्देश्य और इसकी परंपरा को समझें और अगली पीढ़ी को इसके महत्व से अवगत कराएँ।

 

लोहड़ी के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू

लोहड़ी सामाजिक एकता और सामूहिकता का पर्व है। यह त्यौहार हमें यह सिखाता है कि हमें हर खुशी के मौके को मिलजुल कर मनाना चाहिए। इसके साथ ही यह प्रकृति और कृषि के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है।

 

निष्कर्ष

लोहड़ी केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें प्रकृति और अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। लोहड़ी का संदेश है कि खुशी को साझा करें, समुदाय के साथ मिलकर जीवन को उत्सवमय बनाएं और प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें।

 

लोहड़ी का पर्व हमें भारतीय सभ्यता, कृषि और सामूहिकता की शक्ति का अहसास कराता है। हमें चाहिए कि हम इस त्यौहार को न केवल मनोरंजन के रूप में देखें, बल्कि इसके पीछे छिपे गहरे संदेश को आत्मसात करें।

Follow us on WhatsApp 👇 👇

https://whatsapp.com/channel/0029VasURo3HVvTSWtzWUl3U

Follow us on telegram 👇 👇

https://t.me/activeforever1

Follow us on X 👇 👇

https://x.com/nation24news00?s=09

Follow us on facebook 👇👇

https://www.facebook.com/share/14ztkJ1kgX/

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *