क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि …. व्रत रखने से पहले जान लें उसका वैज्ञानिक कारण..

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महाशिवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो भगवान शिव की आराधना के लिए मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से इसे शिव और पार्वती के विवाह का दिन या शिव के दिव्य तांडव नृत्य की रात माना जाता है। परंतु इस पर्व के पीछे गहरे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण भी मौजूद हैं। महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा, मानव शरीर और मनोवैज्ञानिक प्रभावों से भी जुड़ी हुई है। इस लेख में हम महाशिवरात्रि के वैज्ञानिक पहलुओं को विस्तार से समझेंगे।

 

1. खगोलीय प्रभाव और ब्रह्मांडीय ऊर्जा

 

(क) पृथ्वी की झुकाव स्थिति और ऊर्जा प्रवाह

महाशिवरात्रि आमतौर पर फरवरी-मार्च के महीने में आती है, जो वसंत ऋतु का आरंभिक समय होता है। इस दौरान पृथ्वी की धुरी का झुकाव ऐसा होता है कि उत्तरी गोलार्ध में ऊर्जा प्रवाह अधिक सक्रिय हो जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस रात को पृथ्वी और चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का विशेष प्रभाव पड़ता है, जिससे व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी (spinal cord) में ऊर्जा का प्रवाह स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर बढ़ता है। इसलिए इस दिन ध्यान, योग और उपवास करने से मानसिक और शारीरिक लाभ होते हैं।

 

(ख) चंद्रमा और मानव मस्तिष्क पर प्रभाव

चंद्रमा का प्रभाव समुद्र की ज्वार-भाटा पर पड़ता है, और मानव शरीर का 70% से अधिक हिस्सा जल से बना होता है। इस दिन चंद्रमा की स्थिति ऐसी होती है कि यह मस्तिष्क की गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है। ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास से मनोवैज्ञानिक स्थिरता प्राप्त की जा सकती है। यही कारण है कि इस रात को ध्यान, मंत्र जाप और जागरण करने की परंपरा है।

 

2. जैविक और शारीरिक प्रभाव

 

(क) उपवास और शरीर शुद्धिकरण

महाशिवरात्रि पर उपवास रखने की परंपरा है, जिसका गहरा वैज्ञानिक आधार है। उपवास से शरीर को डिटॉक्स (विषहरण) करने में सहायता मिलती है। जब भोजन का सेवन नहीं किया जाता, तो शरीर ऊर्जा को पाचन के बजाय पुनर्जनन (regeneration) में लगाता है, जिससे कोशिकाओं की मरम्मत होती है और शरीर स्वस्थ होता है।

 

(ख) रीढ़ की हड्डी और ध्यान की स्थिति

महाशिवरात्रि पर रातभर जागरण करने और ध्यान करने की सलाह दी जाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, जब व्यक्ति लंबी अवधि तक ध्यान और प्राणायाम करता है, तो उसकी रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है, जिससे ऊर्जा का प्रवाह सही दिशा में होता है। यह स्थिति योग और अध्यात्म में “कुंडलिनी जागरण” के रूप में जानी जाती है, जिससे मानसिक और शारीरिक शक्तियों का विकास होता है।

 

3. मनोवैज्ञानिक और न्यूरोलॉजिकल प्रभाव

 

(क) ध्यान और मानसिक शांति

महाशिवरात्रि पर की जाने वाली साधना, ध्यान और मंत्र जाप न्यूरोसाइंस के अनुसार मस्तिष्क के न्यूरोट्रांसमीटर (जैसे सेरोटोनिन और डोपामिन) के स्तर को संतुलित करने में सहायक होते हैं। इससे तनाव, चिंता और अवसाद (depression) कम होता है, और व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

 

(ख) ध्वनि तरंगों और मंत्रों का प्रभाव

शिव मंत्रों जैसे “ॐ नमः शिवाय” या “महामृत्युंजय मंत्र” के उच्चारण से ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो मस्तिष्क की अल्फा तरंगों को सक्रिय करती हैं। यह तरंगें व्यक्ति को ध्यान की गहरी अवस्था में ले जाती हैं और तंत्रिका तंत्र (nervous system) को संतुलित करती हैं। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि नियमित मंत्र जाप से एकाग्रता बढ़ती है और मानसिक विकार कम होते हैं।

 

4. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

 

(क) सामूहिक ध्यान और सकारात्मक ऊर्जा

महाशिवरात्रि पर हजारों लोग एक साथ ध्यान और पूजा करते हैं, जिससे सामूहिक चेतना (collective consciousness) विकसित होती है। जब कई लोग एक साथ सकारात्मक भावनाओं के साथ मंत्रोच्चार और ध्यान करते हैं, तो सामूहिक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, जिससे समाज में सकारात्मकता और शांति का संचार होता है।

 

(ख) जागरण और आत्मनिरीक्षण

रातभर जागरण करने की परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण से भी जुड़ी हुई है। यह रात व्यक्ति को अपनी आंतरिक ऊर्जा को पहचानने और आत्म-ज्ञान प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।

 

5. शिवलिंग और वैज्ञानिक प्रतीकवाद

 

(क) शिवलिंग और ऊर्जा केंद्र

शिवलिंग को केवल धार्मिक दृष्टि से देखने के बजाय वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो यह ऊर्जा का प्रतीक है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, शिवलिंग एक अद्भुत ऊर्जा केंद्र है, जिसे विशेष प्रकार के पत्थरों से बनाया जाता है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि शिवलिंग के आकार और उसकी संरचना में ऊर्जा संचार की क्षमता होती है।

 

(ख) जलाभिषेक का वैज्ञानिक आधार

शिवलिंग पर जल या दूध चढ़ाने की परंपरा भी वैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण है। पत्थर की ठंडी सतह पर जल चढ़ाने से आसपास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और तापमान संतुलित रहता है।

 

महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक गहरे वैज्ञानिक, खगोलीय और जैविक महत्व वाला दिन भी है। इस दिन उपवास रखने, ध्यान करने, जागरण करने और मंत्र जाप करने से व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह दिन आत्मचिंतन और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। विज्ञान और आध्यात्म का यह अद्भुत संगम महाशिवरात्रि को और भी अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।

 

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